अर्दोआन की चिंता

मजबूरी में अर्दोआन आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्यों के अलावा पंद्रह अस्थायी सदस्यों को भी स्थायी बनाने की मांग जरूर कर रहे हैं लेकिन मंशा उनकी यही है कि भारत किसी भी हाल में पाकिस्तान से वार्ता करे। जनाब अर्दोआन को इतनी बात समझ में क्यों नहीं आती कि दोस्ती और दुश्मनी एक साथ नहीं हो सकती।

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दुनिया में कुछ ऐसे भी मुल्क हैं जिन्हें दूसरे के सुख से पेट में मरोड़ की शिकायत होने लगती है। ऐसे ही कुछ चुनिंदा नेताओं में से एक हैं तुर्की या तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन। शुरू से ही पाकिस्तान के हिमायती रहे अर्दोआन किसके कितने काम आते हैं यह तो गौण है, लेकिन कम से कम इतना जरूर तय है कि दुनिया के हर संभव विवादित मसले में कूद पड़ने की उनकी आदत रही है। शायद उन्हें लगता है कि समस्याओं में कूदने से ही उनकी प्रसिद्धि बढ़ती है।

सुलह कराने की कोशिश

अभी रूस-यूक्रेन जंग की हालत में भी देखा गया था कि दोनों देशों के बीच सुलह कराने की अर्दोआन ने तगड़ी कोशिश की, वह बेकार रही यह और बात है। अब उन्हें भारत-पाक के रिश्ते का ख्याल आया है जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका कहना है कि भारत और पाकिस्तान पिछले 75 सालों से एक ही मसले पर लड़ते रहे हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि दोनों देशों के बीच शांति स्थापना के प्रयास करे तथा दोनों देशों को वार्ता के लिए तैयार करे। बड़े नेक ख्याल हैं जनाब के। इसके पहले भी कई बार राष्ट्रसंघ में कश्मीर का मुद्दा उछाल चुके हैं। इस बार भी उनसे रहा नहीं गया क्योंकि उनके करीबी दोस्त पाकिस्तान की तकलीफ उनसे देखी नहीं जा रही।

भारत ऐसी मांगों को सिरे से खारिज ही करेगा क्योंकि पहले से ही भारत का साफ कहना है कि किसी भी पड़ोसी के साथ किसी विवादित मसले का निपटारा द्विपाक्षिक बैठक में ही हो सकता है। किसी तीसरे पक्ष की मौजूदगी भारत को नापसंद है। और शिमला समझौते में भी यही दलील रखी गई थी। ऐसे में बार-बार अर्दोआन का कश्मीर मुद्दा उछालना यह बताता है कि खुद को हीरो बनाने की नाकाम कोशिश में वे लगे हैं। लेकिन पूछा जा सकता है कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित किए गये आतंकवादियों को भारतीय सीमा में भेजकर जिस तरह खून बहाया जाता है, उसकी कभी उन्होंने निंदा भी की है क्या।

दोस्ती और दुश्मनी एक साथ नहीं

पाकिस्तान दुनिया भर के आतंकवादियों को अपनी धरती पर सुरक्षा देता रहा है, क्या इसकी कभी चर्चा अर्दोआन करते हैं। क्या उन्हें यह बात नहीं खटकती कि जिस पाकिस्तान के लिए उन्हें दर्द होता है उसने अपनी सैन्य सुरक्षा में ही दुनिया के सबसे कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को रखा था। क्या तुर्किए के राष्ट्रपति ने कभी पाकिस्तानी हुक्मरानों से इस मसले पर बात की थी। शायद नहीं।

मजबूरी में अर्दोआन आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्यों के अलावा पंद्रह अस्थायी सदस्यों को भी स्थायी बनाने की मांग जरूर कर रहे हैं लेकिन मंशा उनकी यही है कि भारत किसी भी हाल में पाकिस्तान से वार्ता करे। जनाब अर्दोआन को इतनी बात समझ में क्यों नहीं आती कि दोस्ती और दुश्मनी एक साथ नहीं हो सकती। जिस पाकिस्तान ने भारत से कभी दोस्ताना रिश्ता अपनाने का ख्वाब ही नहीं देखा, जहां का हर हुक्मरान गाहेबगाहे एटमी हमले की धमकी दे दिया करता है, उस मुल्क से भारत की बातचीत कैसे होगी।

अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ.मनमोहन सिंह का जमाना गुजरे अभी बहुत वक्त नहीं बीता। जब-जब भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, तब-तब उसकी पीठ में चाकू मारने की कोशिश की गई। ऐसे में अर्दोआन का यह रोना समझ में नहीं आता है। रही बात कश्मीर की, तो भारत ने बहुत पहले ही बता दिया है कि कश्मीर में पाकिस्तान एक घुसपैठिए की तरह दाखिल हुआ है और उसे पूरा कश्मीर वापस करना होगा। अर्दोआन अपने आंसू कहीं और बहाएं।