इमारत की इबारत

इमारत सिर्फ पत्थरों या ईंटों के नहीं, सोच से बनती है। बनाने वाला भले ही उसमें नहीं रहे या बनने के बाद दुनिया से कूच कर जाए लेकिन उसकी सोच उस इमारत से प्रतिबिंबित होती है। आज भारत सरकार ने विशेष सत्र का आह्वान किया है। इसी सत्र में पुराने भवन को अलविदा कहा जा रहा है, नई इमारत में अब संसदीय चर्चा होगी।

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इंसान जैसे-जैसे सभ्य होता गया, उसे रोटी के अलावा कपड़ा और मकान की भी जरूरत महसूस होने लगी। इन्हीं जरूरतों को पूरा करने में आज भी इंसान किसी न किसी तरह से संलग्न है। इनमें मकान की जरूरत तब आती है जब इंसान व्यवस्थित होने की सोचता है। ठीक वैसे ही राष्ट्र जीवन में भी नए-नए भवनों की जरूरत तब महसूस होती है जब ज्यादा से ज्यादा लोगों को व्यवस्थित करने की बात सामने आती है।

संसद की नई इमारत

भारत सरकार को भी लगा कि देश की पुरानी संसद के बदले अब संसद की नई इमारत बनानी चाहिए। इसके पीछे की वजह कई लोग कई तरह से बताने का प्रयास करेंगे लेकिन यह भी सही है कि आने वाले समय में संसद में सदस्यों की संख्या आज की तुलना में कहीं ज्यादा होगी। सत्ता के विकेंद्रीकरण की सोच को यदि बल मिलता है तो स्वाभाविक है कि कई राज्यों में संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन जरूरी होगा और हो सकता है कि सीटों की संख्या भी बढ़ाई जाए। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही नई इमारत बनाई गई है। पुरानी इमारत का कार्यकाल यहीं से समाप्त होता है।

लेकिन इमारत सिर्फ पत्थरों या ईंटों के नहीं, सोच से बनती है। बनाने वाला भले ही उसमें नहीं रहे या बनने के बाद दुनिया से कूच कर जाए लेकिन उसकी सोच उस इमारत से प्रतिबिंबित होती है। आज भारत सरकार ने विशेष सत्र का आह्वान किया है। इसी सत्र में पुराने भवन को अलविदा कहा जा रहा है, नई इमारत में अब संसदीय चर्चा होगी। लेकिन पुरानी इमारत में जो इबारत लिखी गई है, उससे चाहकर भी अलग नहीं हुआ जा सकता।

अनसुलझे सवालों का जवाब

पुरानी संसद पर हुए आतंकी हमले को जिस तरह भुलाया नहीं जा सकता उसी तरह इस बात को भी नहीं भुलाया जा सकता कि उसी भवन में भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर के पूरे हिस्से को अपना बताकर एक प्रस्ताव पारित किया था। पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक के प्रधानमंत्रित्व को इस इमारत ने देखा है। लोकतंत्र में तमाम उथल-पुथल की गवाह रही देश की पुरानी संसद आज भी अगर जुबान चलाना सीख जाए तो इतिहास के कई अनसुलझे सवालों का जवाब मिल जाएगा। इसे भारत सरकार हो सकता है कि आम लोगों के लिए भविष्य में संरक्षित भी कर दे। लेकिन इस इमारत की इबारत के साथ ही नई इमारत की शुरुआत हो रही है।

देश के सांसदों से इस बात की अपेक्षा रहेगी कि नई इमारत में कुछ ऐसा आचरण शुरू करें जिससे देश को नई दिशा मिल सके। संसद का समय जनता के पैसे से निर्धारित होता है। सदन में पार्टीगत मामलों से इतर जनहित की समस्याओं पर चर्चा होनी चाहिए लेकिन हाल के कुछ वर्षों में ऐसा कम ही देखा जाता है। ज्यादातर समय राजनीतिक हो-हल्ले में ही बीत जाया करता है। जनहित के मुद्दों से ज्यादा पार्टी हित की बातों पर जोर देने वाले सभी दलों तथा उनके वरिष्ठ नेताओं से इतनी उम्मीद देश की जनता जरूर कर सकती है कि संसद का समय बर्बाद न करें।

नए दौर में अब जब नई इमारत मिली है तो इसकी इबारत भी कुछ नई होनी चाहिए। दुनिया जिस तेजी से आगे निकल रही है, उस रफ्तार से अलग यदि भारत केवल सियासी उधेड़बुन या फिरकापरस्ती, भाई-भतीजावाद अथवा भ्रष्टाचार पर ही आपस में उलझता रहा तो लोकतंत्र बीमार हो सकता है। देश अपेक्षा रखता है कि पुरानी इबारत की नींव पर नई इमारत देश को नई दिशा देगी।