ये भूख की तिजारत

संयुक्त राष्ट्र की खाद्यान्न संबंधित कमेटी का दावा है कि भारत के निर्यात रोकने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें 2.80 फीसदी बढ़ गई हैं। जाहिर है कि इससे भारत के व्यवसाय पर असर पड़ेगा। कोई भी देश कल भारत को भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर नहीं देखेगा।

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चुनावी साल के आते ही भारत सरकार ने दुनिया में भूख बाँटने का फैसला कर लिया है। हो सकता है कि कुछ लोगों को यह बात नागवार लगे लेकिन है बिल्कुल सही। दरअसल चुनाव आने से पहले ही भारत सरकार ने विदेशों को हो रहे चावल के निर्यात पर रोक लगा दिया है। इसकी वजह भी है। सरकार का मानना है कि अगर मौसम अनुकूल नहीं रहा और खाद्यान्न संकट कहीं चुनावों के बीच हो गया तो सरकार की खटिया ही खड़ी हो जाएगी।

वैसे भी इस साल का मौसम कुछ ऐसा रहा है कि फसलों की उपज कैसी होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसे में यदि खाद्यान्न संकट हुआ तो घरेलू बाजार में चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इन तमाम कयासों के मद्देनजर ही फिलहाल चावल के निर्यात पर रोक लगी है।

भूख बाँटने का डर

लेकिन इसके साथ ही अरब जगत तथा अफ्रीकी देशों में भूख बाँटने का डर भी सता रहा है। दरअसल भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है जो तकरीबन 40 फीसदी बाजार अकेले दखल करता है। भारतीय चावल के बूते अरब जगत के साथ ही अफ्रीकी देशों की जनता की भूख मिटती है। ऐसे में उन देशों में अचानक भुखमरी के आसार पैदा हो सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की खाद्यान्न संबंधित कमेटी का दावा है कि भारत के निर्यात रोकने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें 2.80 फीसदी बढ़ गई हैं। जाहिर है कि इससे भारत के व्यवसाय पर असर पड़ेगा। कोई भी देश कल भारत को भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर नहीं देखेगा। और दूसरी ओर घरेलू बाजार में धान की खेती करने वाले किसानों की माली हालत भी खराब ही होगी क्योंकि निर्यात बंद होने से उनकी कमाई कम होगी।

घरेलू मोर्चे पर धान की खेती करने वाले किसानों की दशा सुधारने के लिए भी सरकार को कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत आन पड़ी है। सर्वविदित है कि रूस और यूक्रेन की जंग के कारण दुनिया में खाद्यान्न संकट पहले से ही पैदा हो गया था। इस बीच काले सागर से होकर यूक्रेन से खाद्यान्न का जो निर्यात होता था, उस पर भी रूस ने रोक लगा दी थी।

दुनिया में एक नया संकट

तुर्की समेत कई देशों के बीचबचाव के बाद हालात कुछ सुधरे जरूर थे मगर फिर से रूस द्वारा निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से दुनिया में एक नया संकट पैदा होने लगा है। ऐसे में बासमती चावल के निर्यात को रोकने वाली भारत सरकार के पास कई अन्य विकल्प भी हो सकते हैं। सभी किस्म के चावलों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना शायद इस समय के अनुकूल नहीं होगा।

ज्ञात रहे कि हमारी नीति वसुधैव कुटुम्बकम की रही है। हाल ही में जी-20 की बैठक में भी भारत ने दुनिया को यही बताया है। ऐसे में अगर हम किसी सियासी मजबूरी के कारण भूख की तिजारत को बढ़ावा देते हैं तो शायद यह विश्व विरादरी के साथ अन्याय होगा। भारत सरकार को समय रहते इस फैसले पर विचार करना चाहिए। चुनाव हमारी मजबूरी हो सकती है लेकिन जिन देशों की अवाम भूख मिटाने के लिए भारत की ओर ताक रही है, उसका भी ख्याल रखना बेहद जरूरी है।