ये झूठ और गरीबी

भारत कहने को लगातार तरक्की कर रहा है। धरती की बात कौन करे, अब तो चांद पर भी तिरंगा फहरा दिया गया है। लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म होगा कि इन रंगीन सपनों के पीछे एक काली दुनिया भी रहा करती है, जहां तरक्की की रोशनी नहीं पहुंच पाती है।

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भारत कहने को लगातार तरक्की कर रहा है। धरती की बात कौन करे, अब तो चांद पर भी तिरंगा फहरा दिया गया है। जी-20 की बैठक क्या हो गई, लगता है भारत दुनिया में एक खास मुकाम हासिल कर लिया। लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म होगा कि इन रंगीन सपनों के पीछे एक काली दुनिया भी रहा करती है, जहां तरक्की की रोशनी नहीं पहुंच पाती है। एक ऐसी दुनिया है जहां एक मां अपने बच्चों को भोजन नहीं करा पाने का दर्द झेलकर उनके साथ ही आत्महत्या कर लेती है।

एक ऐसी अंधी दुनिया भी इस चकाचौंध में मौजूद है जहां के लोग जिस्म बेचकर भी पेट की भूख नहीं मिटा पाते। ऐसी ही एक दुनिया से खबर आई है कि झारखंड के जमशेदपुर से कुछ बालिकाओं को काम दिलाने के नाम पर एक गिरोह के लोग बाकायदा राजस्थान लेकर चले गये। उन पर अमानुषिक अत्याचार किये गए। दैवयोग से किसी एक को भागने का मौका मिला, जिसने घर लौटकर सारी दास्तान सुनाई है।

भूख से लड़ने की कोशिश

यह दास्तान सिर्फ जमशेदपुर के गरीबों की नहीं है। पश्चिम बंगाल और बिहार के भी ग्रामीण या अविकसित इलाकों से रोजाना इस तरह की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। भूख से लड़ने की कोशिश में आम लोग किसी न किसी के झाँसे में आ जाते हैं और आसानी से काम दिलाने के नाम पर ऐसे लोगों को मानव तस्करी का जरिया बना लिया जाता है। इसमें महिलाओं के साथ ही बच्चे भी शामिल हुआ करते हैं। उन्हें भी काम के बहाने बहला-फुसला कर ले जाने वालों की संख्या कम नहीं है।

सरकार के पास पूरा तंत्र है। वह चाहे तो ऐसे लापता लोगों की तलाश कर सकती है। लेकिन गायब हो चुके बच्चों या किशोरियों की फिक्र कौन करे। सालाना तौर पर समाज से गायब होने वाले बच्चों की संख्या के बारे में अगर क्राइम रिकॉर्ड को देखें तो इस घटना की सच्चाई का पता लग जाता है। लेकिन ये गायब होने वाले लोग या किसी के बहला-फुसला कर ले जाए जाने वाले लोग कहां खो जाते हैं-इसकी सही जानकारी नहीं मिल पाती।

केवल आँकड़ों का खेल

सरकारी विभागों के बाबू लोग केवल आँकड़ों का खेल खेलते रहते हैं। जिनके घर से बच्चे या किशोरियां गायब होती हैं या काम दिलाने के बहाने ले जाकर देश के दूसरे राज्यों में बेच दी जाती हैं, उन्हें थानों के चक्कर लगाने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता। सरकारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं। सरकार बहादुर इस बात से खुश है कि लोग अमन-चैन से जी रहे हैं। सरकार चलाने वालों की कुर्सी सलामत है। देश के गरीब अगर भूखों मरते हैं या लाइलाज ही रह जाते हैं तो यह उनका भाग्य है।

हैरत की बात है कि मानव संसाधन विकास नाम का एक सरकारी विभाग तो है ही उसके अलावा महिला और शिशु कल्याण विभाग भी सरकार ने खोल कर रखा है। मतलब यह कि कहने के लिए सारी व्यवस्था है, मगर गरीबों की अंधेरी जिंदगी तक पहुंचते-पहुंचते शायद सरकारी बाबुओं के कदम थक जाया करते हैं या फिर हो सकता है कि दफ्तर में काम करने का वक्त ही समाप्त हो जाता है। बहरहाल, अपनी किस्मत से जूझते जमशेदपुर, धनबाद, मालदा या समस्तीपुर के अलावा बिलासपुर या रायपुर के साथ तमाम आदिवासी मुहल्लों के अनपढ़ गरीबों के पास नेताओं के चुटीले भाषण पीने और भूख खाने के अलावा अब दूर आसमान में एक अदद चांद को भी अपना कहने का हक मिल गया है।