नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने साल 2000 के लाल किला हमले के मामले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मोहम्मद आरिफ की मौत की सजा को बरकरार रखा है। उक्त हमले में सेना के तीन जवान मारे गए थे।
अदालत ने उसकी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने फैसला सुनाते हुए कहा,
“हमने प्रार्थनाओं को स्वीकार कर लिया है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को विचार से दूर रखा जाना चाहिए।
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हालांकि, मामले की संपूर्णता को देखते हुए उसका अपराध सिद्ध होता है। हम इस कोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हैं और पुनर्विचार याचिका खारिज करते हैं।
चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के पीठ ने वर्ष 2000 में लाल किले पर हमले के मामले में मोहम्मद आरिफ को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक पुनर्विचार याचिका पर यह फैसला सुनाया।
क्या है पूरा मामला
22 दिसम्बर 2000 को कुछ घुसपैठियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और 7वीं राजपूताना राइफल्स से संबंधित सेना के तीन जवानों को मार गिराया।
मो. आरिफ, निश्चित रूप से एक पाकिस्तानी नागरिक है, उसको इस मामले में 25 दिसंबर, 2000 को गिरफ्तार किया गया था।
उसे 24 अक्टूबर, 2005 को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था और 31 अक्टूबर, 2005 को मौत की सजा सुनाई थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 सितंबर 2007 के आदेश से उसकी मौत की सजा की पुष्टि की थी।
बता दें कि, 2013 में उच्चतम न्यायालय ने आरिफ की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी रिव्यू पिटिशन को खारिज कर दिया था। इसके बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आरिफ की क्यूरेटिव पिटिशन को भी खारिज कर दिया था।