झारखंड की वीरांगनाओं की भूमिका अतुलनीय

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ब्यूरो रांची : भारत की आजादी को 76 साल पूरे होने जा रहें है। इस जश्न से पूरा भारत झूम रहा है। 15 अगस्त, 1947 को हम सभी अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुए थे। ये आजादी हमें इतनी आसानी से नहीं मिली थी। भारत ने खून पसीना एक कर के अंग्रेजों से इस आजादी को पाया था। आजादी की इस लड़ाई में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल का नाम सर्वप्रथम शामिल किया जाता है।

हालांकि, महिलाओं के बिना ये लड़ाई अधूरी थी। जी हां, भारत को आजादी दिलाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस आंदोलनों में जहां पुरुषों का हिस्सा लेना आसान था, वहीं महिलाओं के लिए उतना ही मुश्किल। आंदोलन में भाग लेना मतलब समाज में बरसों से चली आ रही कई प्रथाओं को तोड़ने के समान था। इन सभी बेडियों को तोड़ते हुए झारखंड के संग्राम में महिलाओं की भी व्यापक भागीदारी रही।

1780-85 में पाकुड़ अनुमंडल में महेशपुर की रानी सर्वेश्वरी ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया था जिसमें आसपास के पहाड़िया सरदारों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। पहाड़िया जनजाति के लोगों ने अंग्रेजो के खिलाफ लंबा संघर्ष किया और उन्हें अपने क्षेत्र से बाहर निकाल दिया।

इस आंदोलन में बहुत सी महिलाओं ने भी अपनी शहादत दी। इनमें बटकुड़ी गांव की देव मुनि और जीऊरी पहाड़न की चर्चा होती है। इसी प्रकार 1831-32 में सिंहभूम के कोल विद्रोह में अनेक महिलाएं शहीद हुई। वर्ष 1855 में ग्राम प्रधान चुन्नू मुर्मू और सुलखी मुर्मू के चार बेटों सिद्धू, कान्हू, चांद, भैरव के साथ- साथ दो बेटियां फूलो और झानो ने संथाल विद्रोह के नायक की भूमिका संभाली।

लोक कथाओं में संकलित है कि सुबह सवेरे तड़के बरहेट की अंग्रेजी छावनी में घुसकर फूलो और झानो ने सोए पड़े 21 अंग्रेजों की तलवार से हत्या कर दी थी। इसी तरह जब वीर बुधु भगत ने रांची के निकटवर्ती क्षेत्रों में अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया तो इसमें बुधु भगत के बेटे हलधर भगत और गिरिधर भगत के साथ-साथ उनकी बेटियों रूनिया भगत और झुनिया भगत ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कालांतर में पूरे भारतवर्ष में और पूरे विश्व में आदिवासियों के संघर्ष के प्रतीक बने बिरसा मुंडा ने सन् 1886 से 1900 तक अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाया। धर्मांतरण के खिलाफ उन्होंने सर्वदा मिशन पर तीर चलाया, गोदाम में आग लगाई और ईसाई पादरियों पर जबरन धर्मांतरण के खिलाफ हमला किया।

प्रासंगिक है कि बिरसा मुंडा के अनुयायी सरदार गया मुंडा की पत्नी मानकी मुंडा एवं परिवार की अन्य महिलाओं की वीरता को आज भी आदिवासी समाज याद करती है। जब रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीटफील्ड पुलिस बल को साथ लेकर सरदार गया मुंडा को पकड़ने के लिए उनके घर गए तो घर की महिलाओं ने कुल्हाड़ी, दऊली और लाठी लेकर उनका मुकाबला किया और उनके 14 वर्ष के पोते ने अधिकारियों पर तीर-धनुष खींच दिया।

झारखंड के इन सभी आंदोलनों में झारखंड की वीरांगनाओं की भूमिका अतुलनीय है। झारखंड की वीरांगनाओं और क्रांतिकारियों ने दमन और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने पारंपरिक हथियारों से बंदूकों और तोपों का मुकाबला किया।

 

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