तब गुरु तेग बहादुर थे, अब तेरी-मेरी बारी है

कवि संगम में दिखा समाज का प्रतिबिम्ब, सचेत होने की मिली नसीहत

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कोलकाताः साहित्य किसी भी समाज का आईना हुआ करता है। ऐसे में साहित्यकार अपने आस-पास के माहौल से अनभिज्ञ रहे या इतिहास की अनदेखी करे- यह कतई संभव नहीं है। कोलकाता के साहित्यकारों ने भी इसकी बानगी पेश की है जिसके तहत सिख संप्रदाय के नौंवें गुरु तेग बहादुर को ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ की मध्य कोलकाता इकाई ने जहां एक ओर काव्यांजलि समर्पित की, वहीं सीमा पर लड़ रहे जवानों को भी याद किया।

संस्था के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की जिसका कुशल संचालन किया सौमि मजुमदार ने।

कवि आलोक चौधरी ने गुरु तेग बहादुर के बलिदान पर अपनी रचना- ‘तब गुरु तेग बहादुर थे, अब तेरी-मेरी बारी है’ सुनाई तो रमाकांत सिन्हा ने इसी क्रम में ‘आग पानी में तुम न लगाया करो’ सुनाकर लव जिहाद में फंसती बालिकाओं को सचेत किया।

डॉ चंद्रिका प्रसाद ‘अनुरागी’ ने ‘पिताजी थे बरगद की छाँव’ सुनाकर संतान के जीवन में एक पिता के महत्व को समझाने का प्रयास किया एवं देवेश मिश्र ने ‘भीनी भीनी भवति चली जो ससुराल’सुनाकर विवाह के दौरान बेटी की विदाई का दृश्य सभी के सम्मुख जीवंत कर दिया।

काव्य गोष्ठी का आगाज़ करते हुए नवांकुर सृजता बसु ने अंग्रेजी भाषा पर अपनी श्रृंगार रस की कविता सुनाई तो वन्दना पाठक ने अपनी वीर रस की कविता ‘हुए शहीद सीमा पर जो, मैं उनकी याद दिलाती हूँ’सुनाकर माहौल को ओजपूर्ण कर दिया।

जिला महामंत्री स्वागता बसु ने ‘उम्र की दहलीज़ से इक दिन उतर रहा है’सुनाकर तालियां बटोरी और सौमि मजुमदार ने अपनी हार से सभी को सीखने का सन्देश दिया।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रांतीय महामंत्री राम पुकार सिंह ने ‘वादा करो किसी से गर, वादे को निभाओ’सुनाकर सभी को वादे की अहमियत से अवगत करवाया और कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रांतीय उपाध्यक्ष श्यामा सिंह ने ‘नफ़रत पर प्यार का मुलम्मा’चढ़ाने की बात कहकर बदलते दौर में इंसानों के बदलते रूप को दर्शाया |

जिला संरक्षक उमेश चंद तिवारी ने अपनी रचना ‘वक़्त यूँही अब गुज़रता नहीं, कहूं भी तो मैं किससे कहूं’ सुनाकर वर्तमान परिस्थितियों में इंसान की असमर्थता को दर्शाया।

कार्यक्रम उस समय अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया जब प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरधर राय ने ‘ट्रेन हादसे’ पर अपनी हास्य व्यंग्य कविता सुनाई और वर्तमान शासन प्रणाली की दयनीय स्थिति का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया। इन कवियों के अतिरिक्त पायल प्रजापति, नौसीन परवीन, विनीत श्रीवास्तव एवं डॉ शिप्रा मिश्रा ने भी अपनी रचनाओं से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

श्रोताओं के रूप में उपस्थित होकर – हिमाद्री मिश्र, दिलीप कुमार, जूही मिश्रा, पुष्पा साव, बीर बहादुर सिंह एवं आशीष चौधरी ने भी सभी रचनाकारों को भरपूर प्रोत्साहित किया।