विदेशी धरती पर भारत का झंडा फहराने वाली ये हैं बहादुर महिला..!!

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ब्यूरो रांची : आज पूरा देश आजादी के 76 वर्ष पूरे होने पर स्वतंत्रता दिवस का पर्व मना रहा है. इस मौके पर एक बार फिर से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान जोरों पर रहा. हर देशवासी इस अवसर पर अपने घर पर तिरंगा फहरा रहा है. आज तिरंगा फहराना शान की बात है, एक आजाद मुल्क के तौर पर हम अपने देश के तिरंगे का सम्मान करते हुए फूले नहीं समाते लेकिन एक दौर वो भी था जब तिरंगा लेकर घूमना एक बहादुरी का काम था. भारत पर राज कर रहे अंग्रेजों को ये मंजूर नहीं था कि भारत के लोग अपने राष्ट्रध्वज का सम्मान करें.

उस समय एक महिला ने पहली बार विदेश में भारतीय तिरंगा लहराने का दम दिखाया था. जी हां, वो बहादुर महिला थीं, भीकाजी कामा. वो भीकाजी ही थीं जिन्होंने भारत की आज़ादी से चार दशक पहले, साल 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा फहराया था. उस समय 46 वर्षीय पारसी महिला भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में ये झंडा फहराया था. ये भारत के आज के झंडे से अलग था. ये आज़ादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था.

जानकारी अनुसार रोहतक एम.डी. विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर बी.डी.यादव ने मैडम कामा पर किताब लिखी थी. उन्होंने इस संबंध में बताया था कि, “उस समय इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस के सम्मेलन के अवसर पर कांग्रेस में हिस्सा लेनेवाले सभी लोगों के देशों के झंडे फहराए गए थे. भारत अंग्रेजों का गुलाम था जिस वजह से भारत के लिए ब्रिटेन का झंडा था. लेकिन भीकाजी को ये मंजूर नहीं था कि उनके देश के लिए अंग्रेजों का झण्डा फहराया जाए. जिस वजह से उन्होंने भारत का एक झंडा बनाया और वहां फहराया.

अपनी किताब ‘मैडम भीकाजी कामा’ में प्रो.यादव ने बताया है कि झंडा फहराते हुए भीकाजी ने ज़बरदस्त भाषण देते हुए कहा था कि, “ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो.”साल 1905 में भारत में बंगाल प्रांत का बंटवारा हुआ था, जिसकी वजह से देश में राष्ट्रवाद की लहर दौड़ गई थी. महात्मा गांधी अभी दक्षिण अफ़्रीका में ही थे, पर बंटवारे से उमड़े गुस्से में बंगाली हिंदुओं ने ‘स्वदेशी’ को तरजीह देने के लिए विदेशी कपड़ों का बहिष्कार शुरू कर दिया था.

बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चैटर्जी की किताब ‘आनंदमठ’ से निकला गीत ‘बंदे मातरम’ राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों में लोकप्रिय हो गया. भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर भी ‘बंदे मातरं’ लिखा था. इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां थीं. इस झंडे पर बनी लाल पट्टी पर सूरज और चांद छपा था. जिसमें सूरज हिन्दू धर्म और चांद इस्लाम का प्रतीक था. ये झंडा अब पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में प्रदर्शित है. इसके बाद मैडम कामा ने जेनिवा से ‘बंदे मातरम’ नाम का ‘क्रांतिकारी’ जर्नल छापना शुरू किया. इसके मास्टहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही जिसे मैडम कामा ने फहराया था.

 

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