राष्ट्रसंघ में बदलाव का समय

विश्वमंच बना जरूर लेकिन कुछ कुछ प्रभावशाली देशों ने ही यूएन को अगवा कर लिया

113

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में एक पंचायत की जरूरत महसूस की गई थी। इसी पंचायत के गठन की दिशा में यूनाइटेड नेशन या राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई। समझा गया था कि दुनिया में किसी तरह के विवाद की स्थिति में सभी पक्ष यूएन में ही बैठकर विचार-विमर्श के जरिए समाधान तलाशेंगे। सोच थी कि दुनिया देशों के एक साझा मंच से कोई भी किसी देश पर अत्याचार नहीं करेगा तथा पूरी दुनिया में अमन का माहौल कायम रहेगा। गठन के शुरुआती दिनों में यूएन ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यहां तक कि 80 के दशक में भी यूएन ने काफी प्रभावशाली कदम उठाए जिससे यूगोस्लाविया,रवांडा तथा मध्य-पूर्व के देशों में अमन बहाली में सहयोग मिला। यहां तक कि इराक और सीरिया में भी विद्रोह कुचलने के साथ वहां शांति व लोकतंत्र की बहाली के लिए यूएन ने सराहनीय भूमिका निभाई थी। लेकिन पिछले कुछ दशकों में यूएन की भूमिका कमजोर होती गई और पांच देशों के स्थाई सदस्य बनने के बाद राष्ट्रसंघ जैसे बौना हो गया है।

सिर्फ अमेरिका और उसके साथी देशों के इशारे पर काम करने वाले राष्ट्रसंघ या यूएन की भूमिका अब पहले जैसी नहीं रही। विश्वमंच बना जरूर लेकिन कुछ कुछ प्रभावशाली देशों ने ही यूएन को अगवा कर लिया। ताजा मिसाल के तौर पर क्रीमिया पर रूस के दखल को देखें या यूक्रेन और रूस की जंग को ही देख लें। राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद यहां प्रायः ठूँठ हो चली है। इसमें न तो पहले जैसी धार है तथा ना ही किसी मामले में इसे दायरे से बाहर जाकर किसी फारमूले को लागू कराने की ताकत।

कोरोना काल में भी यूएन की भूमिका असमंजस में ही थी। बीमारी के लक्षणों तथा इलाज के प्रोटोकोल की घोषणा से इतर आजतक यूएन की आमसभा इस बात को भी प्रभावशाली ढंग से नहीं रख सकी कि कोरोना संक्रमण पहले चीन से शुरू हुआ था तथा चीन ने ही कोरोना का वाइरस बनाकर दुनिया के लाखों लोगों को मरने पर मजबूर कर दिया है।

रूस आज लगातार यूक्रेन पर परमाणु हमले की धमकी दिए जा रहा है, चीन रोजाना ताइवान को दखल करने की बात कर रहा है- लेकिन यूएन खामोश है। दरअसल पांच स्थाई सदस्यों में रूस और चीन भी शामिल हैं जो यूएन के किसी भी प्रस्ताव के खिलाफ वीटो का प्रयोग कर सकते हैं। ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए जरूरी हो गया है कि वह किसी नए मंच के गठन की ओर सोचे, जिसमें सबकी बात सुनी जाए तथा सबकी समान भागीदारी हो। न किसी को वीटो का अधिकार हो तथा ना ही किसी को कमजोर समझा जाए। भारत के पास एक सुनहरा अवसर मिला है जी-20 के रूप में। भारत अगर दुनिया के तमाम समान मानसिकता वाले देशों से इस मसले पर बात करे तथा नए सिरे से जी-20 को गठित करने के लिए तत्परता दिखाए तो यूएन के समानांतर एक विश्वमंच का गठन हो सकता है, जहां सबको समान अधिकार हासिल होंगे

किसी को वीटो जैसे विशेष कवच का लाभ नहीं मिलेगा तथा सभी देश मिलकर आतंकवाद समेत अन्य बुराइयों के खिलाफ साझा लड़ाई लड़ सकेंगे। यूएन के मंच से शायद अब यह संभव नहीं हो सकता। भारत सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिसमें यूएन से भी बड़ा और सशक्त मंच बनाना संभव होगा। बेहतर है कि अब यूएन को केवल नाम का ही यूएन रहने दिया जाए क्योंकि रूस-चीन-अमेरिका या उत्तर कोरिया-ईरान अथवा इजराइल जैसे देशों ने इस मंच को नगण्य ही साबित कर दिया है।