पुरानी इमारत की मरम्मत का वक्त

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कांग्रेस एक ऐसे संगठन का नाम है जिसने देश की आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई थी। इसके नेताओं ने अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने का जोखिम उठाया था। यह बात दीगर है कि उनमें भी कई मुद्दों पर मतभेद हुआ करता था जिसके कारण कांग्रेस तब भी दो भागों में विभक्त रही।

एक नरम दल तथा दूसरा गरम दल हुआ करता था। लेकिन खास बात यह थी कि सभी में आजादी की ललक थी जिससे कोई भी किसी विचारधारा का विरोध क्यों न करे, अंग्रेजी हुकूमत को भारत से हटाए जाने की राह पर सभी चलते रहे।

देश की आजादी के बाद भी कांग्रेस के ही एक धड़े को सरकार चलाने का मौका मिला। यह भी सर्वविदित है कि आजादी मिलने के बाद खुद बापू ने ही कांग्रेस नामक संगठन को भंग कर देने की सिफारिश की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

वह आजादी की लड़ाई का ही जुनून था कि कांग्रेस के नाम पर हर घर से लोग अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत पर उतारू थे। आज इतने सालों बाद अगर कांग्रेस के उन दिनों के इतिहास में झाँकें तो पता यही चलता है कि कालांतर में यह पार्टी सत्ता सुख और क्षुद्र स्वार्थों के कारण कुछ खास लोगों की विचारधारा तक ही सीमित होती चली गई।

एक ऐसा भी दौर आया जिसमें इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा का नारा दिया गया। कुछ लोगों का आरोप यही है कि यहीं से कांग्रेस समष्टिवाचक नहीं होकर व्यष्टिवाचक होती चली गई।

और इसके विरोधियों ने कांग्रेस को एक परिवार विशेष की पार्टी के रूप में प्रचारित करना शुरू किया।

इस प्रचार का कितना असर हुआ या बाद में कांग्रेस के संगठन का क्या हश्र हुआ, यह शायद बताने की जरूरत नहीं है। हकीकत यही है कि आजादी के बाद के कई दशकों तक देश की जो भी तरक्की हुई या कथित तौर पर जो नुकसान हुआ, वह सबकुछ कांग्रेस के कारण ही हुआ।

मगर आज की कांग्रेस जिस दिशा में बढ़ रही है या जिस तरह अपने पुराने थिंक टैंक से अलग जा रही है, वह शायद इसके लिए अच्छा नहीं है। इस दल के धुर विरोधी भी मानते हैं कि तमाम झंझावातों में उलझी यह पार्टी आज भी अखिल भारतीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के बाद सबसे ताकतवर है तथा केंद्र में सत्तारूढ़ होने की कतार में विपक्षी दलों में सबसे आगे है।

ऐसे में स्थापना दिवस मनाने वाली यह भारत की सबसे प्राचीन पार्टी आज अपनी दिशा अगर तय कर ले तो लोकतंत्र और मजबूत होगा। ज्ञात रहे कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए शासक दल के साथ ही विपक्ष को भी काफी मजबूत होना होता है।

विपक्ष अगर कमजोर रहा तो सत्ता निरंकुश हो जाती है। और सत्ता में बैठे लोग अगर निरंकुश हो गए तो उसकी पीड़ा सबसे अधिक जनता सहती है।

जनता की पीड़ा दूर करने तथा खुद को अगले चुनाव में भाजपा के मुकाबले खड़े होने लायक बनाने में कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी होगी। एक बार दिशा अगर तय हो गई तो दशा सुधरने में वक्त नहीं लगने वाला। जरूरत है कि कांग्रेस अपने गिरेबान में झाँकना सीखे।

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