कुछ और आजमाने का वक्त

बजरंगबली के नाम पर भी कई तरह के प्रचार किए गए।यहां तक कहा गया कि बजरंगबली की जन्म स्थली कर्नाटक में ही बजरंगबली को कांग्रेस निशाने पर ले रही है।

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2014 से लगातार आगे बढ़ रहा भाजपा के विजय रथ का पहिया अचानक लगता है कि थकान महसूस कर रहा है। इस थकान के कारण ही विंध्य पर्वत के उस पार स्थित राज्यों में भाजपा की हवा खराब होती जा रही है।

ले-देकर जिस कर्नाटक से भाजपा को उम्मीद थी, वह भी जाती रही। इसके बावजूद केंद्र में शासक की भूमिका अदा कर रही भारतीय जनता पार्टी के ज्यादातर नेताओं की बॉडी-लैंग्वेज में सुधार नहीं देखकर ही शायद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लगने लगा है कि मोदी-शाह के सियासी जादू या हिन्दुत्व के चमत्कारी मंत्र से इतर भी कोई और तरीका खोजना चाहिए क्योंकि 2024 के आम चुनाव में भी जीतने का लक्ष्य तय किया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस ने भाजपा नेतृत्व को समझाने के लिए ही अपने अंग्रेजी मुखपत्र का सहारा लिया है। संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने साफ लिखा है कि कर्नाटक के नतीजों के बाद आत्मविश्लेषण की जरूरत है।

प्रसंगवश कहा जा सकता है कि मोदी- शाह की सियासत ने वहां जमकर हिंदुत्व का कार्ड खेला। बजरंगबली के नाम पर भी कई तरह के प्रचार किए गए। यहां तक कहा गया कि बजरंगबली की जन्म स्थली कर्नाटक में ही बजरंगबली को कांग्रेस निशाने पर ले रही है। लोगों की धार्मिक भावनाओं को हर हाल में भाजपा नेतृत्व की ओर से गुदगुदाने का काम किया गया मगर नहीं चल सका यह सिक्का। संघ नेतृत्व को भी लगने लगा है कि किसी दूसरे रास्ते की तलाश जरूरी है। शायद इसीलिए मुखपत्र ने खुले मन से मोदी सरकार को सुधर जाने या आत्ममुग्धता से बाहर आने की सलाह दे डाली है। ज्ञात रहे कि हिंदुत्व का कार्ड खेलने के बावजूद भाजपा की पराजय हुई, जबकि 80 फीसदी से ज्यादा हिंदू आबादी कर्नाटक में है।

कुछ ऐसा ही आलम डबल इंजन की सरकार के नाम पर मणिपुर में भी देखा जा रहा है। डबल इंजन की सरकार का नाम लेकर जिस तरह लोगों से वोट मांगे जाते हैं, उसका नतीजा यह है कि मणिपुर में अभी भी हालात पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं आ रहे हैं। मणिपुर में डबल इंजन की ही सरकार है तथा मुसलिम आबादी भी लगभग नहीं के बराबर है। मतलब यह के केवल घिसे-पिटे फारमूले से अगले आम चुनाव में काम नहीं चलने वाला है। सरकार को हेडलाइंस बनाने से ज्यादा आम लोगों की सुविधाओं पर जोर देने की जरूरत होगी।

केवल राजनीतिक समीकरणों से या साजिशों से विपक्षी खेमे को तोड़कर या केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल से उन्हें भयभीत करके सरकार का भला नहीं होने वाला। अब भी वक्त है। नारेबाजी से अलग जनता के काम से खुद को जोड़ने की जरूरत है। पूछा जा सकता है कि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा देनेवाली सरकार को तब खामोश क्यों हो जाना पड़ा, जब ब्रजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध बेटियों ने आवाज उठाई। किसी भी तरह से उस मामले को खामोश करने की चाल चली जा रही है। क्या इसका असर व्यापक समाज पर नहीं हो रहा। पूछा जा सकता है कि अधिकार देने या नहीं देने के नाम पर दिल्ली की सरकार से लगातार उलझने का मकसद क्या है। इससे जनता का क्या भला हो रहा है।

भाजपा नेता सत्यपाल मलिक के सवालों से मुंह फेर कर उनके खिलाफ एजेंसी को लगाने की चाल क्या देश की जनता नहीं समझ रही है। हो सके तो आरएसएस मुखपत्र की भावनाओं का ही भाजपा नेतृत्व सम्मान करे और देशकी मूलभूत समस्याओं के समाधान की दिशा में ईमानदारी से काम करे। केवल जादू से अब काम नहीं चलने वाला- कम से कम संघ के मुखपत्र ने यह जरूर संकेत दे दिया है।