उसूलों की हत्या

नवजात बच्चे इलाज के बगैर मर रहे हैं, लाशों का अंबार लगा हुआ है। सड़ती लाशों की गंध से माहौल गमघोंटू हुआ जा रहा है। इलाज के लिए न तो दवाएं बची हैं, न बिजली या अन्य सुविधाएं। दुनिया का एक कोना रोजाना इस तरह की तस्वीर से जूझ रहा है लेकिन तथाकथित दुनिया की चौधराहट का शौक पालने वाले लोग खामोश बैठे हैं।

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सभ्य समाज को दुनिया में जीने के लिए कुछ नियम तय करने होते हैं। ये नियम केवल किसी एक देश या राज्य की सीमा तक सीमित नहीं होते बल्कि उन्हें आपस में मिल-बैठकर पूरी विश्व विरादरी ही तय किया करती है। इन नियमों का सम्मान किया जाता है। यही वजह है कि किसी भी सूरत में बीमार लोगों, बुजुर्गों, निहत्थों,बच्चों या महिलाओं पर कोई भी दुश्मन हमला नहीं करता। लेकिन आजकल सारे नियमों की हत्या की जा रही है।

नवजात बच्चे इलाज के बगैर मर रहे हैं, लाशों का अंबार लगा हुआ है। सड़ती लाशों की गंध से माहौल गमघोंटू हुआ जा रहा है। इलाज के लिए न तो दवाएं बची हैं, न बिजली या अन्य सुविधाएं। दुनिया का एक कोना रोजाना इस तरह की तस्वीर से जूझ रहा है लेकिन तथाकथित दुनिया की चौधराहट का शौक पालने वाले लोग खामोश बैठे हैं। यह नजारा है गाजा पट्टी के उस अस्पताल का जिसे अल शफा नाम दिया गया है तथा जिसे कथित तौर पर हमास के आतंकियों ने अपना अड्डा बना रखा है।

इजरायली सेना का ऑपरेशन जारी

कथित तौर पर यहां के आतंकी मरीजों की आड़ में अपना सामरिक अड्डा बना चुके हैं। अस्पताल के नीचे उन्होंने कथित तौर पर सुरंग खोद रखी है जिसमें असंख्य आतंकी छिपे हुए हैं। उन आतंकियों के सफाए के लिए इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू लगातार जंग को हवा दे रहे हैं और अस्पताल में ही इजरायली सेना का ऑपरेशन जारी है।

नेतन्याहू का कहना है कि युद्ध हमास के आतंकियों ने थोपा है, जिन्होंने निरीह इजरायली लोगों पर हमले के बाद उन्हें अगवा कर लिया है। बंधकों की रिहाई के लिए भी हमास की ओर से कथित तौर पर संपर्क किया जा रहा है। हो सकता है कि जल्दी ही बंधकों की रिहाई का रास्ता भी कतर की बैठक में निकल आए। लेकिन जिस तरह गाजा के अस्पताल में बच्चों की मौत हो रही है, उस पर पूरी दुनिया की खामोशी यह बता रही है कि इंसान कितना संवेदनहीन हो चला है। महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों तथा बीमार लोगों को ढाल बनाकर अस्पताल में अड्डा बनाने वालों ने जितना बड़ा अपराध किया है, उससे कम अपराध उन इजरायली फौज के लोगों ने भी नहीं किया है जो हमास के लड़ाकों की तलाश के नाम पर निरीह लोगों को गोलियों से भून रहे हैं अस्पताल में।

राष्ट्रसंघ की भूमिका

सबसे दुखद बात यह है कि इंसानी नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। कोई देश की लड़ाई लड़ रहा है, कोई जमीन बचाने की लड़ाई की बात कर रहा है तो कोई धर्म के नाम पर एकजुट होने की बात कर रहा है। लेकिन सबसे बड़े धर्म इंसानियत का रोजाना गाजा में जो जनाजा उठ रहा है-इस पर सभी खामोश हैं। और तो और कथित तौर पर दुनिया भर की समस्याओं के समाधान के लिए गठित राष्ट्रसंघ की भूमिका भी एक ठूँठ पेड़ की तरह हो गई है, जिसमें न पत्ते उगते हैं तथा ना ही कोई फल लगता है।

इंसानी हक-हकूक से जहां खेल हो रहा है, उस मसले पर राष्ट्रसंघ को जरूर बोलना चाहिए था। पश्चिमी एशिया के माहौल को धर्म के नाम पर बिगाड़ने की साजिश में शामिल देशों को भी होश में आने की जरूरत है। ध्यान रहे कि इंसानी उसूलों की हत्या का तमाशा आज जो लोग खामोश रहकर देख रहे हैं, यह तमाशा उन्हें भी कल खून के आंसू रुलाएगा। देर होने से पहले जाग जाना जरूरी है।