इंदिरा के हत्यारों की पूजा

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किसी भी समाज में आतताइयों की पूजा नहीं की जाती। हो सकता है कि देखने वाले का नजरिया अलग हो किंतु तब भी किसी सूरत में किसी दुष्ट की पूजा भारतीय समाज में वर्जित है।

कुछ मुट्ठी भर लोगों को छोड़ दें तो पूरा भारत आज भी यही कहेगा कि किसी प्रधानमंत्री की हत्या जायज नहीं है। प्रधानमंत्री और वह भी महिला। किसी भी पंथ में किसी निहत्थे पर वार करना वर्जित है।

लेकिन इंदिरा गांधी के हत्य़ारों ने उनके ही आवास पर उनकी हत्या की और वह भी तब, जब श्रीमती गांधी बिल्कुल निहत्थी थीं। इसे धर्म का नाम देकर भले ही किसी धर्म विशेष को कुछ सिरफिरे लोग बदनाम करने की कोशिश करें लेकिन भारत के संतों ने या गुरुओं ने किसी भी सूरत में अबला या निहत्थों पर हमले को पाप कहा है।

ऐसी हालत में अगर इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्ड का काम कर रहे बेअंत सिहं और सतवंत सिंह ने उनपर गोलियां चला कर उनकी जान लेली तो किसी भी समाज में ऐसे हत्यारों की कोई जगह नहीं हो सकती।

किंतु विडंबना है कि अभी भी कुछ लोग इंदिरा गांधी के हत्यारों को शहीद करार देने की कोशिश कर रहे हैं। हो सकता है कि इसके पीछे कोई खास सियासत काम कर रही हो लेकिन इसे किसी भी सूरत में जायज नहीं कहा जा सकता।

पंजाब में लंबे अरसे से पाकिस्तान अपना घिनौना खेल खेल रहा है तथा ड्रग्स के कारोबार को जारी रखने के लिए आईएसआई की निगरानी में वह लगातार युवाओं को भड़काता रहा है।

सीमा पार से पंजाब में दाखिल होने वाले आतंकी हर हाल में चाहते हैं कि इस राज्य को आतंकवाद की आग में झोंक दिया जाए। सियासी समीकरण जब-जब उनके अनुरूप बनते हैं, तब-तब पाकिस्तानी जासूस इस राज्य में अपना खेल खेलते रहे।

नए सिरे से फिर आनंदपुर साहब प्रस्ताव को उछाला जा रहा है तथा पंजाबी युवाओं को इस बात को समझने के लिए उकसाया जा रहा है कि इंदिरा की हत्या करने वाले हत्यारे नहीं, बल्कि शहीद थे।

लेकिन सबसे अफसोस की बात है कि एक पवित्र स्थल को इन हत्यारों के गुणगान के लिए चुना गया। अकाल तख्त के सामने सभी सिर झुकाया करते हैं।

महान गुरुओं की सीख के आगे पूरी दुनिया ही नतमस्तक होती है। ऐसी पवित्र भूमि पर यदि हत्यारों का जयगान किया जाए, उन्हें महिमा मंडित किया जाए अथवा उन्हें शहीद बताकर समाज में नए सिरे से स्थापित किया जाए, तो यह सर्वथा निंदनीय है।

इंदिरा गांधी की हत्या के कारण अपनी जगह हैं, हत्यारे अपनी जगह हैं-लेकिन अकाल तख्त की मर्यादा सबसे ऊपर है। इस पवित्र जगह को भी अगर आतंक के खिलाड़ी अपना निशाना बनाने की कोशिश करने लगे हैं तो जाहिर है कि पंजाब की धरती फिर से किसी अनजाने दौर की ओर मुड़ने को मजबूर हो जाएगी।

आतंकी तत्वों को किसी भी सूरत में पनाह दी गई या हत्यारों को शहीद बनाने की कोशिश हुई तो शायद इसे लोग कबूल नहीं करेंगे।

कुछ मुट्ठी भर लोग हो सकता है कि अपनी ओछी करतूत करें, हत्यारों को महिमा मंडित करके अपनी सोच पर खुश हो जाएं लेकिन अकाल तख्त की पवित्रता से समझौता नहीं होना चाहिए।

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